शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

धर्म

भला-बुरा जग में न कुछ, नहीं नर्क नहि स्वर्ग।
परम धर्म इस जगत्‌ में, पालन निज कर्तव्य॥॥

दृढ़ निश्चय औ लगन से, बनते बिगड़े काम।
देह धर्म निज कर्म है, पफल अधीन प्रभु राम॥॥

मन्दिर, मस्जिद, चर्च ही, नहिं होते हैं धर्म।
जीव-दया, परहित करो, यही धर्म का मर्म॥॥

पर हित सम नहि धर्म जिमि, त्यों दयालु श्रीराम।
आमिष भोगी गीध तक, भेज दियो निज धम॥॥

पर पीड़ा सम जगत्‌ में, पाप न दूजा और।
मार पडे़ यमराज की, मिले नरक में ठौर॥॥

मात-पिता, गुरु-देवता, मुनि जन वेद-पुरान।
मैंढक, चिमगादड़ बने, निन्दक शास्त्र प्रमान॥॥

दस लक्षण जो धर्म के, मनु ने दिए बताय।
विश्व प्रमुख हर धर्म में, सहज भाव दिख जाय॥॥

धर्म न पूजा पाठ में, नहीं ध्यान निष्कर्म।
देश-काल सामर्थ्य सम, जीव कर्म ही धर्म ॥॥

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