साँस तार कहँ टूटि है, यह नहिं जानत कोय।
काल खींच ले जाय तहँ, जहँ विधि लिक्खी होय॥॥
माता-पिता, भाई-बहन, सुत-दारा अरु मित्र।
इस संसार सराय में, यात्री-वत एकत्र॥॥
जाने वाले को यहाँ, सके न कोई रोक।
आने वाला आएगा, विरथा करो न शोक॥॥
पाँच तत्त्व का पूतला, है चेतन आधीन।
चार तत्त्व वह ले चला, देह धरा भई दीन॥॥
देह त्याग कर जीव जब, जाता है परलोक।
आँसू परिजन के निरख, पाता है अति शोक॥॥
शोक त्याग, हो शांत चित, मन में धरो धीर।
आँसू से जीवात्मा, पाती पथ में पीर॥॥
साँस चले तक ही रहें, इस जग के सम्बन्ध।
साँस रुके छूटें सभी, प्यारे भाई बन्ध॥॥
जीते जी सब ही करें, मुँह देखी सी बात।
आँख मुँदें करनी पफले, सत्य प्रकट हो जात॥॥
धन सम्पति की बात क्या, जाय न कौड़ी संग।
राम भजन, परहित करन, पुण्य लाभ सत्संग॥॥
जीवन भर संचय किया, करी न कौड़ी दान।
अन्त समय खाली चले, समझ सोच नादान॥॥
भक्ति रूप हल जोतिये, जीवन रूपी खेत।
राम नाम बिन छीजिहै, ज्यों मुट्ठी की रेत॥॥
खान, पान अरु भोग में, छत भर सुख मिल जाय।
राम शरण जाए बिना, शान्ति मिलेगी नाय॥॥
राम नाम बन्धन कटें, सुख-सम्पति मिल जाय।
राम नाम की गर्जना, सुन यमदूत पठाय॥॥
शूकर-कूकर योनि में, भटक रहे दिन रैन।
राम शरण जाए बिना, जीवहिं मिलै न चैन॥॥
संग न कोई आवता, नाहीं जाता साथ।
भजन, भक्ति कर मूढ़ मन, जाना खाली हाथ॥॥
बीता तो वश में न था, पर भावी तव हाथ।
माया ममता त्याग मन, भजो राम रघुनाथ॥॥
बिना भक्ति भव-सिन्धु की, पार न कोई पाव।
जन्म-जन्म भटकत पिफरे, ज्यों बिन माँझी नाव॥॥
भव-सागर माया भँवर, काम-वात विपरीत।
नाव पार नहिं लग सके, बिना राम-पद प्रीत॥॥
काम, क्रोध, मद, लोभ वश, कीने पाप हजार।
सच्चे मन से हरि सुमरि, होवे बेड़ा पार॥॥
खेल-कूद बचपन गयो, यौवन नारी संग।
मन अब भी वश में नहीं, शिथिल भए सब अंग॥॥
लोभ-भँवर में जीव पड़, भोगे कष्ट अपार।
राम-नाम-माँझी बिना, होय न बेड़ा पार॥॥
सुर दुर्लभ नर तन मिला, जो पिफर मिलना नाय।
परहित कर प्रभु नाम जप, जनम सपफल हो जाय॥॥
मनुज देह ही कर सके, पर सेवा उपकार।
शूकर-कूकर जीव जड़, का निज तक संसार॥॥
दीन जान छोटा समझ, मत कीजै अपकार।
समय सदा नहि एक-सा, रहता करो विचार॥॥
चार दिशा जो लोक में, जानो यम के द्वार।
साधु ज्ञानी भक्त जन, जाँहि न दक्षिण द्वार॥॥
कामी, कपटी, लालची, रत परधन परदार।
पापी जन के वासते, ही दक्षिण का द्वार॥॥
मृत्यु मात्र ही सत्य है, बाकी सभी असत्य।
मूरख ज्ञानी सभी जन, देख रहे हैं नित्य॥॥
जीवन लाया आ गए, चले मौत आदेश।
आना जाना वश नहीं, क्या घर क्या परदेश॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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