'शापित' क्यों चिन्ता करे, तव चिन्ता बेकार।
बिन हरि कृपा न होय कुछ, लाख मरो सिरमार॥॥
भावी होने को बनी, टलती कबहूँ नाय।
रोवन हित नैना मिले, कैसे तब मुस्काय॥॥
जीवन के दिन चार हैं, मन कर लेहु विचार।
पिफर नहि आवे यह घड़ी, रे मन प्रभुहि पुकार॥॥
'शापित' इस संसार में, सभी तरह के लोग।
प्रभु का भजन बिसारि कर, चाहत हैं सुख भोग॥॥
आँधी आवत प्रेम की, मन उड़ जाय अकास।
जीव-ब्रह्म से जा मिले, यदि हो सच्चा दास॥॥
बिनु प्रभु कृपा न गुरु मिले, गुरु बिन मिले न ज्ञान।
जैसे बिन सूरज उगे, होय न निशि अवसान॥॥
जन्म मरण सम ही नहीं, सत्संगति निज हाथ।
प्रभु कृपा और भाग्य बस, होय संत जन साथ॥।
जप व्रत पूजा पाठ अब, छूटे सब आधार।
एक आस प्रभु कृपा की, गुरु चरनन उद्धार॥॥
गुरुजन आवत देख कर, सादर करे प्रणाम।
आयु विद्या बल बढे़, होय जगत् में नाम॥॥
अल्पज्ञान भी मिला हो, गुरुवत उसको मान।
किये अनादर होय वह, चाण्डाली घर श्वान॥॥
सभी निरोगी अरु सुखी, सभी भद्रता युक्त।
परहित रत निशिदिन रहें, करें कष्ट से मुक्त॥॥
जन-मन दुर्जनता मिटे, सज्जनता बसि जाय।
सत्य-अहिंसा क्षमा के, सुमन हृदय खिल जाँय॥॥
मनसिज सुख चिन्तन किये, जड़वत होती बुद्धि।
दीन बन्धु चरण रज, होय अहल्या शुद्धि॥ ॥
पथ परमारथ अति सरल, लोक पंथ अति शूल।
क्षमा करें, प्रभु भूल सब, लोक दण्ड प्रति भूल॥॥
विविध रूप धन के यहाँ नहि सन्तोष समान।
जब आवे सन्तोष मन, कृपा प्रभू की जान॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें