बावनवीं इस सदी का, स्वागत कीजै दौड़।
त्याग, अहिंसा, सत्य श्रम, भारत हो सिरमौर॥॥
इक्यावन सौ वर्ष का, सोने सा इतिहास।
पिछले दो सौ साल में, कितना हुआ विनाश॥॥
बावनवीं का नाम सुन, चौंक रहे विद्वान।
मानस-सुत गौरांग के, नहिं अपनी पहचान॥॥
मन से जो अंग्रेज के, अब भी बने गुलाम।
इक्किसवीं का आज भी, करें वही गुणगान॥॥
एक जनवरी से नहीं, भारत का सम्बन्ध।
अपने मानस पर नहीं, अब कोई प्रतिबन्ध॥॥
इक्किसवीं के शोर में, निजता को मत भूल।
शक्ति, संगठन, शौर्य से, विश्व होय अनुकूल॥॥
चैत सुदी की प्रतिपदा, देती यह संदेश।
कलियुग का भी इसी दिन, हुआ लोक प्रवेश॥॥
विक्रम संवत् की पड़ी, नींव आज के रोज।
भूल गए परतंत्र हो, निज संस्कृति निज ओज॥॥
इसी दिवस से हैं जुड़ी, प्रेरक कथा अनेक।
केशव ने हो अवतरित, किया राष्ट्र अभिषेक॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें