शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

अयोध्या कारसेवा

महाकुम्भ के पर्व पर, सन्तन कीन विचार।
जन्मभूमि की मुक्ति ही, हिन्दू-बल-आधर॥॥

देवरहा बाबा दिया, हर्षित ह्वै आशीष।
देवोत्थान एकादशी, दो हजार छियालीस॥॥

गाँव-गाँव चारों दिशा, पूजीं शिला अनन्त।
उजड़े हिन्दू-विपिन में, सदियों बाद बसन्त॥॥

देशवासियो सोच लो, पिफर यह दिन नहि आय।
जो न राम मन्दिर बने, तो हिन्दुत्व लजाय॥॥

सदियों में करवट लई, अब मत जाना सोय।
तन-मन-धन अरपन किये, जनम सार्थक होय॥॥

राम तिहारी भूमि पर, कैसा अत्याचार।
जन-मानस में प्रभु करो, लछमन का संचार॥॥

आज-कालि जो टल गई, शिलान्यास की बात।
देशवासियों सोच लो, पिफर नहि अवसर आत॥॥

मस्जिद खुद गिरवाय के, दैवहिं तुम को दोष।
ऐसे में भी बाँकुरो, मत खोना तुम होश॥॥

सरयू तट सम तट नहीं, राम नाम सम नाम।
अयोध्या सम नगरी नहीं, पूर्ण-काम सुखधाम॥॥

राम कृपा ते ज्यों बनौ, रामेश्वर सो सेतु।
रामशिला पूजन बनो, हिन्दु जागरण हेतु॥॥

सदियाँ बीती सोबते, अब तो जागो भाय।
या बिरियाँ जो ना जगे, पिफर नहि अवसर आय॥॥

सत्ता-लोभी, मूढ़मति, धर्म-कर्म ते हीन।
स्वारथ हित ये बेच दें, देश धर्म और दीन॥॥

संकर सुत के हाथ है, आज देश की डोर।
राम नाम के घोष ते, मद-बल देउ निचोर॥॥

दुर्बलता या तन्त्र की, समझ रहे उद्दण्ड।
जान बूझ हूँ वोट हित, बोलें झूठ प्रचण्ड॥॥

दुनिया भर में एक हू, मसजिद देउ दिखाय।
चन्दन की लकड़ी जहाँ, ढूँढे हूँ मिल जाय॥॥

एक नहीं मीनार जहँ, मुल्ला देत अजान।
राम भवन कूँ पिफर कहें, मसजिद ये शैतान॥॥

ऐसी मसजिद कौन सी, जहाँ नहीं मीनार।
बिन अजान के शरहते, कैसे होय गुहार॥॥

भीति चित्र और खम्भ में, पवन पुत्र वाराह।
का बाबर ने या जगह, पशु पूजा की आय॥॥

तुर्की हमलावर कहें, बाबर को ये लोग।
भारत में चर्चित भयो, सत्ता का संयोग॥॥

बार सत्ततर युद्ध का, झेल चुके हैं रोष।
लाखों माँओं ने करी, अपनी खाली कोख॥॥

मस्जिद के स्वामित्व में, साझा कभी न होय।
खुला द्वार जिसका रहे, आज्ञा देय न कोय॥॥

यदि झगडे़ की भूमि पै, मसजिद लेउ चिनाय।
कह हदीस उसकी दुआ, खुदा कबूले नाय॥॥

इमाम, मुअज्जिम मुतवली, खादिम की दरकार।
मसजिद में होता नहीं, प्रतिमा का अधिकार॥॥

भीति, खम्भ पर खुद रहें, हाँ तो चित्र अनेक।
मन्दिर कू-मसजिद कहें, हठधर्मी की टेक॥॥

आज तलक भी जिस जगह, लगी कभी न अजान।
इमाम, मुल्ला, मौलवी, का न कोई प्रमान॥॥

वाजिद अलीशाह और, मुहम्मद इब्राहीम।
सापफ-सापफ हैं लिख गए, मसजिद कभी रही न॥॥

पिछली बातें भूलकर, जागो हिन्दू वीर।
बार-बार मिलना नहीं, दुर्लभ देव शरीर॥॥

राम-राम कहते चलो, राम धम की ओर।
रात अन्धेरी मिट चली, होने आया भोर॥॥

लाठी, आँसू गैस और, गोली की टंकार।
सिंह सदृश आगे बढ़े, देखा सब संसार॥॥

लीला राम कृपाल की, देख न पाय नीच।
बाबा 'बस' ले के चलो, सेन, सिपाही बीच॥॥

इक दो की गिनती कहा, तोड़े सब अवरोध।
सागर-सम उमड़त चल्यो, राम-नाम जन-बोध॥॥

पलक झपकते चढ़ि गए, गुम्बद पर प्रभु बाल।
भगवा ध्वज पफहराय के, कीनो ऊँचो भाल॥॥

दाँतन अँगुरी दाब के, देखत सैन-सवार।
'मुल्ला' के आदेश पर, दीनी गोली मार॥॥

पक्षी पर मारे नहीं, बढ़ि-बढ़ि बोले बोल।
राम-भक्त 'सिंघल' दई, खोल ढोल की पोल॥॥

लाठी के आघात ते, कीन्हा रक्त-स्नान।
पीछे-पीछे वीर के, चली आर्य-सन्तान॥॥

नाम, रूप, गुन, प्रकट कर, सपफल कीन निज नाम।
मानव तन की सपफलता, जो आवे प्रभु काम॥॥

पूर्व पुण्य प्रारब्ध से, सरयू-सरिता-तीर।
रहीं परम दिव्यात्मा, जिनने तजै शरीर॥॥

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