निज संस्कृति के ज्ञान बिन, बने न देश महान।
वेद, उपनिषद् भागवत, गीता, गंगा-ज्ञान॥॥
नए वर्ष का हो गया, अर्ध रात्रि प्रवेश।
मानवता सद्भाव की, वृद्धि करें गणेश॥॥
नव-प्रभात गुरुवार का, ले आया नव वर्ष।
स्थायी हो सरकार तो, सम्भव जन-उत्कर्ष॥॥
भारत-रज-चन्दन बसे, स्वर्ग बसे हर गाम।
हर बाला सीता यहाँ, बच्चा-बच्चा राम॥॥
गंगा तट है ज्ञान का, यमुना कर्म अधर।
मर्यादा की प्रेरणा, देती सरयू धर॥॥
उत्तर दिशि नगराज हैं, दक्षिण सिंधु महान।
अटक-कटक के बीच में, बसता हिन्दुस्थान॥॥
रहा विश्व में राष्ट्र का, राज्य मूल आधर।
शक्ति भारत राष्ट्र की, दर्शन धर्म-विचार॥॥
गंगा-यमुना सरसुती, कावैरी औ सिन्धु।
ब्रह्मपुत्र औ नर्मदा, पुण्य लाभ के बिन्दु॥॥
महानदी, गोदावरी, कृष्णा दक्षिण प्राण।
शुभ दामोदर कुण्ड से, गण्डक बही महान॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें