शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

शिक्षा, ज्ञान, ग्रन्थ

शिक्षा द्वारा मनुज के, ज्ञान चक्षु खुल जाँय।
बिनु संयम, अध्ययन बिन, आलसि पावे नाँय॥॥

बुद्धि न बाड़ी में उगै, बुद्धि न बिके बजार।
पठन, मनन, चिन्तन बिना, खुलें न या के द्वार॥॥

शिक्षा, बुद्धि विवेक अब, बिकें न काऊ भाव।
ज्यों कुँजडे़ की पैंठ में, नहि मोती की आब॥॥

चार वेद, वेदांग छः, मीमांसारु पुरान।
र्ध्मशास्त्र और न्याय को, चौदह विद्या जान॥॥

ज्योतिष शिक्षा, व्याकरण, छन्द शास्त्र का ज्ञान।
निरुक्त, कल्प वेदांग ये, भेद कहें विद्वान॥॥

ग्रन्थ-ज्ञान, पर-हस्त धन, सरे न कोई काम।
मनन बुद्धि निजहस्त ध्न, असमय आवे काम॥॥

ग्रन्थ ज्ञान नहि ज्ञान है, ज्यों निज-धन पर-हाथ।
ज्ञान आचरण में रमें, जिमि धन अपने हाथ॥॥

विद्या पढ़ना सपफल यदि, समझ पडे़ यह बात।
रहे पुराना नित नया, नव पुरान हो जात॥॥

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