'अटल' अचल सम आपका, है व्यक्तित्व महान।
भारत माँ का विश्व में, बढ़ा दिया सम्मान॥॥
राष्ट्र संघ के मंच पर, हिन्दी का उद्घोष।
सत्ता को पिफर भी नहीं, आया किंचित होश॥॥
चार दशक प्रतिपक्ष की, गरिमा रखी संजोय।
राष्ट्र व्यथा अनुमान कर, मनके लिए पिरोय॥॥
लोह शूल की डगर पर, चल काटा इक वर्ष।
चिंतक, कवि, नीतिज्ञ पर, पश्चिम करे विमर्श॥॥
बावनवीं इस शती में, हो भारत उत्कर्ष।
त्याग, तपस्या, साध्ना, लख जन-जन में हर्ष॥॥
भाषा, संस्कृति एक हो, भारत होय अखण्ड।
केसर क्यारी भूमि से, होंय दूर उदण्ड॥॥
शेष सत्र निर्विन रह, यदि पूरा हो जाय।
काल खण्ड इतिहास में, स्वर्णिम युग कहलाय॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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