शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

राजनैतिक घटनाएँ और राजनीतिज्ञ

सोनिया के दरबार में, कीनी जाय पुकार।
कांग्रेस की नाव को, देवि लगाओ पार॥॥

कई साल से दीन जन, करते रहे गुहार।
पिघल गया नारी हृदय, की अर्जी स्वीकार॥॥

गत वर्षों में गिरी थी, एक सिंह पर गाज।
कब तक देखें केसरी, बचा सकेंगे लाज॥॥

मृतक न जीवित होत है, सुध कुण्ड हूँ बोर।
कहा समझ कर सोनिया, आई शव की ओर॥॥

तेरह की तिकड़ी बनी, चली न संवत एक।
धर्म विरोधी मंच पर, पिफर जुड़ रहे अनेक॥॥

अपने घर को छोड़कर, आय रहे जो पास।
सोच समझ कर कीजिए, इन सब पर विश्वास॥॥

जयललिता से संधि का, मत कीजै प्रस्ताव।
भ्रष्टाचारी मित्र से, बच न सकेगी नाव॥॥

राजनीति के क्षेत्र में, शत्रु-मित्र नहि कोय।
सत्ता कुर्सी है प्रथम, चाहे जो कछु होय॥॥

आश्वासन देकर किया मायावती ने घात।
ऐसी नेता को कभी, भूल न लीजै साथ॥॥

मानव के हित पद बने, मानव पद-हित नाय।
मूरख पद आसीन हो, न्याय नहीं कर पाय॥॥

पाँच मिनट में बन रही, थी जिन की सरकार।
सात रोज में भी नहीं, खुद को सके सुधर॥॥

तीन देवियों ने किया, असमय ऐसा वार।
है बनती दिखती नहीं, अब स्थायी सरकार॥॥

संविधान विद कह रहे, बारम्बार पुकार।
बी.जे.पी. सकती चला, अब संविद सरकार॥॥

सौ करोड़ के देश में, नेता मिला न एक।
अब इटली की शरण में, रगड़ें नाक अनेक॥॥

सर्वोच्च पद देश का, है किस कारन मौन।
संशय अस्थिर-गर्त में, गिरा रहा है कौन॥॥

मानवता और न्याय का, पीट रहे जो ढोल।
सिंदानी की घोषणा, खोल रही है पोल॥॥

लोकतंत्र हित चाहिए, दृढ़ निश्चय सरकार।
वर्ण, जाति अरु क्षेत्र से, उठ कर करो विचार॥॥

आए दिन यदि देश में, बदली यूँ सरकार।
तब निवेश सम्भव नहीं, अर्थशास्त्र का सार॥॥

संगमा, अनवर संग मिल, चिन्तन किया पवार।
तीन उच्चपद राष्ट्रहित, कीजै मित्र विचार॥॥

स्वामी ललिता सोनिया, मिलकर किया विचार।
चलनी अब नहीं चाहिए, केन्द्र 'अटल' सरकार॥॥

दाव-धैंस की नीति से आगे बढ़े न देश।
निज-हित-साधन में नहीं, लगे लाज जिन लेश॥॥

लगता है इस सत्र में, टिके न यह सरकार।
भावी नव निर्माण का, होगा बन्टाधर॥॥

त्रिगुट संग मिल सोनिया, ले सरकार बनाय।
शेष अवधि की बात क्या, साल चलन नहि पाय॥॥

आए दिन ललिता रही, नंगा नाच दिखाय।
'अटल' अचल कब तक रहें, अब नहीं देखा जाय॥॥

दो यादव सुरजीत मिल, स्वामी, ललिता नार।
नीति और सिद्धान्त बिन, चल न सके सरकार॥॥

अन्तिम साल शताब्दि का, खेलेगा कुछ खेल।
आम चुनावी जलधि में, नेता रहे धकेल॥॥

वर्तमान को भूल अब, कीजै भावी ध्यान।
मूल संगठन के घटक, की करिये पहिचान॥॥

बिना संगठन के कभी, चल न सके सरकार।
दिल्ली, मध्यप्रदेश अब, है यू.पी. पर वार॥॥

आरक्षण की चाल चल, देवीहिं दीनी मात।
जात-पाँति की आग पिफर, पफैली रातों रात॥॥

राष्ट्र-भक्त बन कर रहे, अपनों पर ही वार।
सत्ता ही तो है नहीं, राजनीति का सार॥॥

संविधन वेत्ता रहे, कर नित नये विचार।
वर्तमान सरकार के, हैं कितने अधिकार॥॥

शब्द-जाल में पफँस रहे, शापित तर्क विचार।
धरे हाथ पर हाथ क्या, मूक रहे सरकार॥॥

पाँच महीने देश क्या, रहे देखता खेल।
मनमानी बाबू करें, जो नहि रहे नकेल॥॥

काम अधुरे रोककर, यदि बैठे सरकार।
राष्ट्र विरोधी भाव का, हो निश्चित विस्तार॥॥

गुजराती सा हो रहा, यू.पी. में भी खेल।
वही दिशा कल्याण की, जिस दिशि गया बघेल॥॥

दिल्ली का परिणाम भी, सका न आँखें खोल।
सिंह खुराना द्वन्द्व ने, दी विपक्ष को पोल॥॥

मिश्रा, टण्डन, राजसिंह, को कर दिया निराश।
यू.पी. पर कल्याण जी, लगी हुई है आस॥॥

यू.पी. में सांसद अगर, गए कहीं जो हार।
बी.जे.पी. की केन्द्र में, बन न सके सरकार॥॥

राजनीति के नाम पर, होती आज अनीति।
सत्ता का सम्बन्ध बस, नहिं कोउ शत्रु न मीत॥॥

राजनीति में अब भई, भाँडन की भरमार।
नीति शब्द जाने नहीं, पद के दावेदार॥॥

नेता और नेतृत्व में, अब नाहीं सम्बन्ध।
देश-राष्ट्र जन नाम पर, रचें बहुत से पफन्द॥॥

रैली देखत लाल की, वी.पी. भये उदास।
आरक्षण की औषधी, लाए रामविलास॥॥

तेरह दिन ही भाजपा, चला सकी सरकार।
तेरह ने मिल एक दिन, दीनी टक्कर मार॥॥

शिवजी की बारात सम, गण सब रंग-बिरंग।
गौड़ा जी का कर रहे, नित्य कापिफया तंग॥॥

राजनीति के खेल में, कोई माय न बाप।
कल तक जिसकी वन्दना, आज पुजावें आप॥॥

चुपके-चुपके केसरी, दीना सिंघ पछार।
राव साब की चाल के, विफल किये सब वार॥॥

पाँच साल श्री राव ने, दीनी सब को छूट।
धन, धरती, चारा दवा, सब अपनी हैं, लूट॥॥

तारकोल, चारा, चना, टेलीपफून, मकान।
किसे कहें छोटा-बड़ा, सब हँडिया के धन॥॥

बूटा, जाखड़, रामसुख, लालू, भजन मिसाल।
जयललिता औ राव मिल, दक्षिण किया निहाल॥॥

तुष्टीकरण की नीति का, देख चुके परिणाम।
मढ़ा नगाड़ा जाय नहि, सौ चूहे के चाम॥॥

पी.वी.जी भी चल पडे़ वी.पी. सिंह की राह।
मनमानी कर लीजिए, एक वर्ष कुछ माह॥॥

'हिन्दू' हिन्दुस्थान में, बनते जाँहि अछूत।
राष्ट्रवाद की आड़ में, चाल चल रहे धूर्त॥॥

असमय ही राजीव को, काल ले गया खींच।
बिन माँझी की नाव अब, इंका भँवरन बीच॥॥

व्यक्ति पूजकों ने मिला, दी मिट्टी में शान।
पाँच दिवस की खोज में, मिला न एक प्रधान॥॥

राजनीति के जाल के, काट दिये सब पफन्द।
बेटा-बेटी राग में, रहो सहज स्वछन्द॥॥

मित्र भाववश ही दई, बच्चन उचित सलाह।
रंगे सियार के झुण्ड में, भाभी नहि पफँस जाय॥॥

राजनीति के नाम पर, चला रहे व्यौपार।
अंधे रंग बता रहे, मूक वाक्‌ व्यवहार॥॥

अल्पसंख्यीय वोट से, कुर्सी मिलती नाँहि।
शेख, बुखारी चरण में, अब वह ताकत नाँहि॥॥

भारत में हिन्दुत्व की, अब न उपेक्षा होय।
जन मानस की भावना, समझ लेहु सब कोय॥॥

समदर्शी तक खा गए, राम नाम से मात।
बीस बरस की साधना, लुटी प्रेम के हाथ॥॥

भारत-जन जागृत हुआ, देखे सब के काम।
बिना काम मत ना मिले, अब पार्टी के नाम॥॥

डूबी तीन प्रदेश में, बी.जे.पी. सरकार।
आत्म निरीक्षण कीजिए, क्यों खाई यह मार॥॥

जन-सेवा के बिन नहीं, नेता जी कल्याण।
'अडवानी' और 'अटल' जी, कब तक रक्खें ध्यान॥॥

कल तक ताऊ ही रहे, थे बढ़-बढ़ कर बोल।
इस चुनाव ने खोल दी, उनकी सारी पोल॥॥

चुल्लू भर पानी बहुत, शरमदार के काज।
भारत के बेताज को, आवे तनिक न लाज॥॥

बात राष्ट्रहित की करें, सत्ता लोभी सियार॥
चार दशक में राष्ट्रहित, कर न सकी सरकार॥॥

नाम मात्र के रह गए, आज तीज त्यौहार।
मेंहदी चूड़ी लेन में, धनिया है लाचार॥॥

दीन-हीन हरिजनन पर, रुके न अत्याचार।
सत्ता-कुर्सी के लिए, पीटें ढोल लबार॥॥

बापू यदि जीवित कहीं, रह जाते कुछ काल।
तिल-तिल पल-पल मारते, नेहरु लाल कलाल॥॥

पाँच दशक में एक भी, खोज न सके प्रमाण।
शठ-हठ बस हैं छोड़ते, अब भी ओछे बाण॥॥

देश-द्रोह खुद ही करें, दोष मढें पर-माथ।
दूजे का तिल दीखता, नहि निज टेंट लखात॥॥

गाँधी जी के देश में, राज्यपाल का राज।
दो करोड़ बस खर्च कर, रखी भवन की लाज॥॥

राज्यपाल होता सदा, राष्ट्रपति का अंग।
पिफर क्यों कर कैसे रखे, भला हाथ को तंग॥॥

लोकतंत्र की विश्व में, चर्चा है सर्वत्र।
लालू सा नेता नहीं, दुनिया में अन्यत्र॥॥

ताल ठोंक कर कह रहे, लालू सबहि सुनाय।
को माई का लाल है, कुर्सी देय हिलाय॥॥

आज चुनावी दौर का, मचा हुआ है शोर।
प्रत्याशी सब साह हैं, प्रतिद्वन्द्वी सब चोर॥॥

लोक हनन कर पीटते लोकतन्त्र का ढोल।
गठबन्ध्न सरकार से खुलती उसकी पोल॥॥

सभी जगह सस्ती मिले महँगाई है नाम।
मिटा न पाए जो इसे कह दो उसे सलाम॥॥

शत्रु-शत्रु सब मित्र हों, नीति शास्त्र विचार।
तेरह रिपु ने मित्र बन, हथिया ली सरकार॥॥

अपने ही कल्याण हित, लुटा रहे हैं माल।
कर्ज, निवेश, विदेश का, विस्तृत होता जाल॥॥

सत्ता कुर्सी के लिए, क्रय कीना ईमान।
पाँच साल जनता लुटी, सोए चादर तान॥॥

बन्धु हवाला-घुटाला, मिलकर कीना राज।
रिश्वत दे कुर्सी बचा, नरसिंह राखी लाज॥॥

तेरह दल सरकार पर, गिरी केसरी गाज।
बचती अब दखिती नहीं, देवेगौड़ा लाज की लाज॥॥

बापू जी के नाम से, जो जग में विख्यात।
शैतानी सन्तान वह, मायावती बतात॥॥

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