शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

राम

कलियुग वैतरणी नदी, विषय-भँवर गहराय।
राम-नाम माँ गऊ की, गहो पूँछ हरषाय॥॥

राम रसायन के बिना, कटें न भव के रोग।
प्रभु इच्छा मन में समझ, सहो हर्ष अरु शोक॥॥

राम नाम नौका सुदृढ़, गुरु-मंत्र पतवार।
कर निश्चय निसि दिन जपै, हो भवसागर पार॥॥

राम नाम बिन साँस जो, प्रति पल खाली जाय।
काम, क्रोध्, मद, लोभ की, कीचड़ में लिपटाय॥॥

पापपुंज कौ तिमिर जब, मन में बैठा आय।
नाम-दीप के जरत ही, पलभर में हट जाय॥॥

मानव जैसी देह यह, पिफर मिलने की नाय।
छोड़ जगत्‌ का आसरा, राम जपो सत भाय॥॥

भाव-सूत्र में नाम की, मुक्ता लेउ पिरोय।
विद्युत आभा क्षणिक है, पफेर अन्धेरो होय॥॥

श्याम सलोने गात की, अति अद्भुत है ज्योत।
श्याम रंग में जो रंगे, तनमन उज्ज्वल होत॥॥

राम-राम सब रटत हैं, लखैं न प्रभु के कर्म।
पशु-पक्षी और भीलनी, का पहिचानो मर्म॥॥

काम, क्रोध्, मद, लोभ में, भटक मर रहे लोग।
राम-रसायन के बिना, कटें न भव के रोग॥॥

राम-राम भज राम भज, राम-राम कह राम।
धन, वैभव वनितादि सुत, अन्त न आवैं काम॥॥

राम बनाए ही बनें, बिगड़े उलटे काम।
तू तो मात्र निमित्त है, कर्ता प्रेरक राम॥॥

जहाँ राम तहँ 'मैं' नहीं, जहँ मैं तहाँ न राम।
'शापित' दोनों ना मिलें, निशि-पतंग इक ठाम॥॥

सभी नाम भगवान के, सब से सीध राम।
ज्यों हाथी के पाँव में, होवे सब का पाम॥॥

जीवन संध्या में प्रभू, निज घर लेउ बुलाय।
सरयू जी गोता लगा, जनम पीर मिट जाय॥॥

गुरु सेवा, प्रभु कौ दरस, अरु सरयू का स्नान।
अन्त समय यदि मिल सके, निश्चय मुक्ती जान॥॥

राम नाम ते होत हैं, भव बन्ध्न सब धूर।
जीवन सुख सम्पति मिले, अन्त दूत यम दूर॥॥

धन से सुख विद्या मिले, पर न मिले आनन्द।
राम-कृपा बिन ना कटें, भव सागर के पफंद॥॥

राम कहे धन ना मिले, धन ते मिले न राम।
राम बिना धनपति बने, मिलहि न छन बिसराम॥॥

भूत शूल, भावी कुसुम, प्रति मन करहिं निवास।
लाख जतन कीजै मगर, मिटहि न इन कर त्रास॥॥

स्वप्न झूठ नैना खुले, नैन मुदे जग झूठ।
सत्य नाम श्री राम का, गुरु अनुकम्पा लूट॥॥

मनु शतरूपा ने किया, अवधपुरी जब वास।
पुत्र रूप प्रभु प्रकट हो, पूरी कीनी आस॥॥

वर्णाश्रम पालन करें, नीति प्रीत के साथ।
रामराज्य की कामना, पूरी की रघुनाथ॥॥

मुनि-पत्नी पत्थर बनी, देखउ काम प्रभाव।
करुणालय प्रभु चरण-रज, भरे वेदना घाव॥॥

पुत्र-पती, स्वामी-सखा, शिष्य, भ्रात भगवान।
सब ग्रन्थन में ढूँढ के, लाओ राम समान॥॥

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