शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

अंक महिमा

॥एक॥
ब्रह्म एक, जिव एक है, भारत भू जग एक।
जाति, धर्म, पाखण्ड सब, मनुज, धर्म, सच एक॥॥

॥दो॥
देव-दनुज, माता-पिता, ब्रह्म-जीव सब दोय।
हानि-लाभ, सुख-दुःख में, सम हो ज्ञानी सोय॥॥

॥तीन॥
ब्रह्मा-विष्णु-महेश त्रय, सत-रज-तम गुण तीन।
मनसा-वाचा-कर्मणा, एक होय गति दीन॥॥

॥चार॥
चार वेद, युग चार हैं, वर्णाश्रम भी चार।
चार परम पुरुषार्थ हैं, मुनि जन कहें विचार॥॥

॥पाँच॥
पञ्च तत्व सुख कर्म हित, दीनी इन्द्रिय पाँच।
मुक्ति मिले अभिमान तज, ईश्वर इच्छा नाच॥॥

॥छः॥
षट् दर्शन, षट् जीभ-रस, षडॠतु, षड्-रिपु जान।
गुरु सेवा सत्संग से, ज्ञान दृष्टि पहचान॥॥

॥सात॥
लोक, ॠषि, दधि सात हैं, भाँवर सात प्रमान।
सुर नर अरु गंर्ध्व सब, करें सप्त स्वर गान॥॥

॥आठ॥
अष्ट योग, सिद्धि अष्ट हैं, आठ पहर दिन-रात।
बाज झपट ले जाय कब, प्रतिपल भज रघुनाथ॥॥

॥नौ॥
नवविधि नौ ही भक्ति-पथ, नवग्रह, नौ ही द्वार।
महिमा अमित नवांक की, देखो हृदय विचार॥॥

॥दस॥
दस दिशि और दस मास सम, अद्भुत दस अवतार।
'गुरु किंकर' के रूप में, पवन-पुत्र साकार॥॥

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