शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

गुरु वन्दन

बंदऊँ गुरु तव कमल पद, हे प्रभु 'मोहन' रूप।
शीघ्र उबारो नाथ अब, पड़ा अज्ञ भव-कूप॥॥

दृढ़ श्रद्धा विश्वास से, गुरु का कीजै ध्यान।
मोह मुक्त कर भक्ति का, गुरुवर दें वरदान॥॥

मन पावन हो ज्ञान से, धन की सदगति दान।
गुरु-सेवा, सत्संग से, मिले मुक्तिपथ धाम॥॥

ध्यान रखो गुरु चरन में, करो सकल निज कर्म।
स्वाति बूँद पपिहा तपै, घट परिहारिन मर्म॥॥

राम कथा की मित नहीं, कहें अनादि अनन्त।
तुलसी 'किंकर' रूप में, पूजत विद्वत संत॥॥

बाल्मीकि तुलसी भये, तुलसी 'किंकर राम'।
राम कथा बिन नहि कटें, रोग खोट विश्राम॥॥

'गुरु किंकर' अपनाय कर, दीना जनम सुधर।
निश्चित अगले जन्म में, मिले राम का द्वार॥॥

बिनु गुरु कृपा न अघ नसहिं, मन न होय निष्काम।
काम-युक्त मन में कभी, बसहिं न 'किंकर-राम'॥॥

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