प्रथम पूजि गजवदन को, चरण कमल चित लाय।
सतसैया प्रस्तुत करूँ, कीजै देव सहाय॥॥
सब देवों में पूज्य जो, शिव के पुत्र उदार।
लज्जा मेरी राखिये, मूषक के असवार॥॥
नहि कविता का ज्ञान कुछ, नहि कुछ छंद विचार।
हंस वाहिनी मात निज, हाथ शीश मम धर॥॥
कर वीणा पुस्तक धरे, अन्य हस्त है माल।
कृपा-दृष्टि हो जाय यदि, मूक होय वाचाल॥॥
मानव-मन पाषाणवत, संयम छैनी-धार।
बुद्धि हथौड़ा ज्ञान-गुरु, प्रतिभा रचे सुधार॥॥
श्रीगुरु चरण नवाय सिर, और गणेश मनाय।
सतसैया के सृजन में, शारद करो सहाय॥॥
मात भगवती शारदा, क्षमा करो मम दोष।
शिथिल लेखनी में भरो, माँ थोड़ा सा जोश॥॥
माता तेरी कृपा ते, बनत असम्भव काज।
बुद्धिहीन या दास की, हाथ तिहारे लाज॥॥
विद्या बुद्धि स्वरूपिणी, वाणी की दातार।
दीन-हीन या जीव कौ, बेड़ा कीजै पार॥॥
विषयी, लम्पट, दीन के, घर में बैठो आय।
वर्ण-शब्द-ध्वनि-भाव-रस, लेखनि में बसि जाय॥॥
हे माता परमेश्वरी, शक्ति रूप गुन खान।
मोह मुक्त कर दीजिये, छूटे मिथ्या मान॥॥
सबते भोले देव शिव, याहि लेहु पतियाय।
आक, धतूरा अंजुली, भर बस दूध चढ़ाय॥॥
जा पर कृपा न करें शिव, वह न राम-रज पाय।
औघड़दानी लीजिये, 'शापित' को अपनाय॥॥
औघड़ दानी परम् शिव, राम चरण रति देउ।
राम कथा गुन गान हित, अज्ञ हि शक्ति देउ॥॥
गुरु, गणेश, शारद सुमरि, शिव चरणन धरि शीश।
राम कथा बरनन चहूँ, किरपा करहु कपीश॥॥
जा पर कृपा न होय तव, रामशरण नहि पाय।
बुद्धि पुंज, अंजनि सुवन, कीजै स्वामि सहाय॥॥
मैं, पापी, कपटी, छली, औरहुँ अगनित दोष।
मात-पिता शिशु पर कभी, भूल न करते रोष॥॥
मेरी भव चिन्ता हरो, हे कौशलपति भूप।
तजत शत्रुहू शत्रुता, देखत ही तव रूप॥॥
कौशल्या माता सुमरि, लै कैकई अशीष।
मात सुमित्रा चरणरज, धरण कर नीज शीश॥॥
श्रुतिकीरति और माण्डवी, उर्मिलपद सिरनाय।
जनक नन्दिनी जानकी, कीजै दास सहाय॥॥
जनक नन्दिनी जानकी, जगत् जननि प्रभु-शक्ति।
कामी-पापी मूढ़ को, दीजै गुरु की भक्ति॥॥
महाराज दशरथ सुमरि, लव-कुश शीश नवाय।
पवन-पुत्र हनुमान प्रभु, हृदय विराजो आय॥॥
कर नव-ग्रह की वन्दना, दशदिशि शीश नवाय।
लखन, शत्रुघ्न भरतजी, कीजै दास सहाय॥॥
राम की डोर गहि, मनुआ मत अकुलाय।
पशु-पक्षी तक तरि गए, ग्रन्थन देख उठाय॥॥
तुम अति दीन दयालु प्रभु, मैं अति अज्ञ लबार।
पाप नदी की भँवर में, नौका बिन पतवार॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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