शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

परिवार सम्बन्धी

इस दुनिया की रीत है, देखो नैन उघार।
मात-पिता अरु मित्र क्या! सब मतलब का प्यार॥॥

पत्नी भी खुश जब तलक, लाय हाथ धन देहु।
जब धन हाथ न धर सको, अलग बसाओ गेहु॥॥

पैसा ही माँ-बाप है, पैसा ही रिपु-मीत।
पैसा ही पत्नी-पति, इस युग की यह रीत॥॥

सास-बहू का आँकड़ा, है छत्तीस समान।
जिस घर में त्रेसठ बने, पुण्य पराक्रम मान॥॥

मिथ्या जग में झूठ सब, सुत दारा पितु-मात।
जैसे कड़वे नीम की, कड़वाहट प्रति पात॥॥

स्वारथ की डोरी बँधा, यह सारा संसार।
मात-पिता, सुत-भामिनी, कहें इसी को प्यार॥॥

मिथुन सिंह की राशि के, यदि कन्या वर होय।
प्रेम-भाव दिन-दिन बढ़े, बिरले ही दुख होय॥॥

मात-पिता तब तक भले, जब तक मिले न नार।
चन्द्रमुखी के दरस से, बने शत्रु परिवार॥॥

माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी, सुत, घर-द्वार।
माया के संबंध सब, रहने हैं दिन चार॥॥

मूरख सुत, क्रोधी प्रिया, अरु कुगाँव का वास।
यदि 'शापित' तीनों मिलें, समझो नरक निवास॥॥

विधवा पुत्री, मूर्ख सुत, परनारी का नेह।
बिना आग के जरत है, इन तीनन से देह॥॥

निज बेटी बेटी लगे, बहू न बेटी होय।
ऐसे घर में चैन ते, कन्या सके न सोय॥॥

ऐसे घर में भूलेहूँ, कन्या देऊ न कोय।
मात-पिता हों स्वार्थी, बहिन कर्कशा होय॥॥

पति-पत्नी के वास्ते, कर न सकै जो काम।
प्रेयसि हित सब कुछ करे, भूल साम औ दाम॥॥

बालक को विद्या न दें, वैरी ते पितु मात।
हंस मध्य हो उपेक्षित, ज्यों बगुले की जात॥॥

रहना चाहे सासरे, गावे नैहर गीत।
ऐसी दुल्हन किस तरह, पावे पति की प्रीत॥॥

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