शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

स्वास्थ्य सम्बन्धी

भाद्र मास और क्वार में, खुले माँहि जो सोय।
सूर्योदय पीछे जगे, निश्चित रोगी होय॥॥

संग कलेवा छाछ ले, भोजन में घी खाय।
गरम दूध ले रात में, पत्नी अति सुख पाय॥॥

ताम्रपात्र में जल भरे, सिरहाने रख नित्त।
प्रातः उठ पी लीजिये, स्वस्थ देह और चित्त॥॥

हर्र बहेड़ा, आँवला, घी शक्कर के संग।
रोग पास आवे नहीं, बल में होय मतंग॥॥

हर्र बहेड़ा, आँवला, कूट-छान सम भाग।
दो खुराक जो लेय नित, वैद्य डाक्टर त्याग॥॥

गरमी बढे़ मसान में, रुक-रुक आवे मूत्र।
शीतल जल से दो वटी, चन्द्रप्रभा लो सूत्र॥॥

लघुशंका के साथ यदि, वायु विसरजित होय।
तुरत वैद्य ढिंग जाइये, देर किये दुख होय॥॥

भारीपन रहे पेट में, शौच न खुलकर आय।
भूसी ईसबगोल की, दूध संग ल्यो खाय॥॥

भोजन करके तुरत ही, लघुशंका को जाय।
दाँत भींच शंका करे, शुगर पास नहि आय॥॥

घृत अचार पापड़ दही, खाओ खिचड़ी संग।
स्वास्थ्य स्वाद दोनों सुखद, चित में रहे उमंग॥॥

भोजन उतना कीजिए, जो सहजहि पचि जाय।
अति भोजन ते होत है, उदर शूल या बाय॥॥

क्वार करेला, चैत गुड़, कढ़ी न सावन खाय।
भादों मूली त्यागिये, वैद्य पास नहि आय॥॥

सावन में घोड़ी जने, अरु भादों में गाय।
भैंस जने जो माघ में, तो कुनवा कूँ खाय॥॥

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