अँचरा ओटक कान्ह कूँ, मैया दूध पियात।
द्वार नन्द बाबा ठडे़, सैनन ही बतरात॥॥
घुटअन चलि-चलि कान्ह अब, लागो ठाड़ो होन।
मात जसोदा वारती, राई मिरची नोन॥॥
सरपट आँगन में पिफरे, चौखट पै गिर जाय।
लीला देखत श्याम की, ब्रह्मादि सकुचाँय॥॥
घर ते बाहिर खेलिबे, मैं नहिं जाऊँ मात।
मोल कंजरी ते लियो, दाऊ मोहि बतात॥॥
मोकू तू हटकत सदा, वा कू डाँटत नाय।
जान परायो भेद कछु, तेरे मनहु लखाय॥॥
माखन रोटी देत ना, काचो दूध पियात।
चोटी तनिकहु ना बढ़ी, झूठ बोल बहकात॥॥
मैं माखन खायो नहीं, साँच कहूँ मैं मात।
ऊँचे छींके पै कहाँ, पहुँचें नन्हे हाथ॥॥
तू मैया अति सूध्री, ग्वालिन परम लबार।
खटकत आँखिन में सदा, इनकी तेरो प्यार॥॥
घर अपने जे लै गई, मोकू आप बुलाय।
माखन दही खबाय के, छाती लियो लगाय॥॥
चन्द्रमुखी मृग लोचनी, मंगल बिन्द ललाट।
राधा परिचय करन हित, खोजत मोहन बाट॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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