गधाधिराज लंकाध्पिति, बाकी ढेंचू वृन्द।
पावन दिन यह शुभ घड़ी, जुड़े सभी मतिमन्द॥॥
दुखिया मानव जाति को, ढेंचू का उपदेश।
दीक्षा गदर्भ ज्ञान की, मेटे सकल कलेश॥॥
वक्त पड़े आवे शरण, बाप कहे हरषाय।
वैसे अपने कुटुम्ब में, नैक घुसन दे नाय॥॥
गुस्से में निज दोष कूँ, हम पै देत लगाय।
घरवारी सुनि सिर धुनै, मन-ही-मन पछिताय॥॥
क्लोपैट्रा सुन्दरि बनी, नहाय हमारे दूध।
दसमुख तक ने शीश पर, धरे हमारे पूज॥॥
ढेंचू की सुन शंख ध्वनि, काँप्यो बुद्ध समाज।
बहुमत यों जागो अगर, चलै नहीं पिफर राज॥॥
गध वोट ते खा रहे, माल मलीदा श्वान।
समय आ गया बंधुवर, पकरो इनके कान॥॥
बुद्धि वादी जाति में, ऊँच नीच के भाव।
अश्वानुज दर्शन सदृश, मिले न कहुँ सद्भाव॥॥
वीतराग हमसा कहीं तुम्हें मिलेगा नाँहि।
शीत, घाम, बरसा कभी, हमकूँ व्यापे नाँहि॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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