कैसे तुम्हें बताऊँ मैं, तुम हो स्वयं प्रवीन।
सबके मन की जानती, पर मेरे मन की न॥॥
तेरे शशि-मुख किरन की चाहूँ इक रसधर।
एक बार की कृपा ते, हो शापित उद्धार॥॥
शापित मन बैरी भयो, अब अपने वश नाहि।
निसि बासर तड़पत रहे, तव दर्शन की चाह॥॥
नाही करत बने नहीं, हाँ करते सकुचाय।
'शापित' ऐसे जीव की, किस विधि करें सहाय॥॥
द्यूत खेल अधर्म कियो, मन में अति संताप।
व्यसन छुड़ावहु करि छमा, रक्षा कीजै आप॥॥
पुत्र किया जीवन सपफल, सेवापथ अपनाय।
स्वस्थ दीर्घ जीवन मिले, प्रतिपल राम सहाय॥॥
शनिवार, 2 फ़रवरी 2008
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